घर वालों से झूठ बोलकर मैं 7 दिन तक हिमाचल प्रदेश की वादियों में घूमता रहा

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Photo of घर वालों से झूठ बोलकर मैं 7 दिन तक हिमाचल प्रदेश की वादियों में घूमता रहा by Musafir Rishabh

घूमते हुए कई बार ऐसी चीजें हो जाती हैं जो आपके प्लान में नहीं होती है। उस समय काफी बुरा लगता है लेकिन बाद में वही चीज आपके सफर को खूबसूरत बनाती है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मैंने कई राज्यों के कई शहरों को एक्सप्लोर किया था लेकिन हिमाचल प्रदेश जाना कभी नहीं हो पाया। मेरा हिमाचल जाने का बहुत मन था लेकिन घर वालों का मनाना भी एक बड़ा टास्क था। मैंने वो टास्क दूसरे तरीके से पूरा किया। मैंने घऱ पर बताया कि कंपनी ने कुछ दिनों के लिए दिल्ली बुलाया।

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इसके बाद तय तारीख पर मैं दिल्ली पहुँच गया। वहाँ से शाम को हमारी बस हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर के लिए थी। शाम को मैं दिल्ली आईएसबीटी पहुँचा और वहाँ से अपने दो छोटे बैग के साथ रामपुर बुशहर जाने वाली बस में बैठ गया। बस भी अपने समय पर बढ़ चली। कुछ देर में हम दिल्ली से बाहर बढ़े जा रहे थे। जून का महीना था सो गर्मी भी कुछ ज्यादा ही थी। रात को एक जगह ढाबा पर बस रुकी।

चंडीगढ़ अंबाला होते हुए हमारी बस देर रात कालका पहुँची। जहाँ बस थोड़ी देर के लिए रूकती मैं भी बाहर चला जाता। कालका से थोडा चलने पर परवानू चेक पोस्ट आता है। यहीं से हिमाचल प्रदेश शुरु हो जाता है और साथ में शुरू हो जाता है घुमावदार रास्ते। सुबह के 4 बजे हम शिमला पहुँचे और कुछ घंटों बाद नारकंडा पहुँच गए। जब कोई बस में चढ़ता तो कंडक्टर कहता टाकी मार, मतबल दरवाजे को बंद करो। सुबह के 10 बजे हम रामपुर बुशहर पहुँचे।

बैग गायब

रामपुर बुशहर बस स्टैंड पर बस पहुँची तो मैं भी बैग लेने के लिए उठा तो क्या देखता हूं कि मेरा एक बैग रैक पर नहीं है। पूरी बस को छान डालता हूं, कंडक्टर से बात करता हूं लेकिन बैग नहीं मिला। उस बैग में मेरे गर्म कपड़े थे। मैं ऐसी जगह पर जाने वाला था जहाँ ठंड बहुत पड़ती थी और मेरा बैग गायब हो गया था।

अब एक बैग के साथ मैं रामपुर की सड़कों पर चले जा रहा था। काफी आगे चलने के बाद मैंने एक सस्ता लेकिन अच्छा कमरा ले लिया। नहा-धोकर रामपुर बुशहर को देखने के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले हमने रामपुर बुशहर के प्राचीन मंदिरों को देखा। उसके बाद सतलुज नदी के किनारे घंटों बैठा। रामपुर के बाजार में थुकपा का स्वाद लिया और फिर से रामपुर की गलियों में गुम हो गया।

किन्नौर

अगले दिन सुबह 5 बजे मैं फिर से रामपुर बुशहर बस स्टैंड पर था। रिकोंगपिओ जाने वाली खाली बस मे हम बैठ गए। सुबह के अंधेरे को चीर कर बस उजाले में पहुँच गई। सुबह-सुबह पहाड़ खूबसूरत लग रहे था। मेरे कैमरे को देखकर कंडक्टर ने सबसे आगे वाली अपनी सीट मुझे दे दी। अब मैं हिमाचल के सबसे खूबसूरत रास्ते से रूबरू हो रहा था।

कुछ देर बाद बस किन्नौर वैली में प्रवेश कर गई। मैंने हिमाचल प्रदेश के उस रास्ते को देखा जिसे पहाड़ काटकर बनाया गया है। ये प्रसिद्ध रास्ता काफी लंबा था। लगभग 3 घंटे बाद बस रिकोंगपिओ बस स्टैंड पहुँच गई। यहाँ पर मैंने परांठा खाया और फिर कल्पा के लिए बस पकड़ ली। कुछ देर बाद हम कल्पा पहुँचे और यहाँ से सुसाइड प्वाइंट जाने के लिए लोकल गाड़ी मिल गई।

सुसाइड प्वाइंट से पैदल-पैदल हम वापस कल्पा आए। रास्ते में हमें सेब के बागान मिले लेकिन अभी फल छोटे थे। हमने ऐसा होटल लिया जहाँ से किन्नर कैलाश का नजारा दिखाई देता हो। अगले दिन हम वापस रिकोंगपिओ पहुँचे और यहाँ भी एक होटल में रूके। रिकोंगपिओ में हमने चंद्रिका माता मंदिर और भैरों मंदिर देखा। दिन भर हम रिकोंगपिओ को पैदल नापते रहे।

नाको

अगले दिन सुबह-सुबह हम फिर से एक बस में बैठे हुए थे। ये बस काजा जा रही थी लेकिन हम नाको जाने वाले थे। रिकोंगपिओ से नाको तक का रास्ता बेहद खतरनाक और खूबसूरत है। नाको के रास्ते में पहाड़ बेहद ऊँचे और बंजर हैं। इन पहाड़ों पर आपको हरियाली देखने को नहीं मिलेगी। ऐसे ही रास्तों से होकर हम नाको पहुँच गए। नाको एक छोटा-सा गांव है जो किन्नौर में आता है।

नाको किन्नौर का आखिरी गांव है। हमने इसी गांव में एक छोटा और सस्ता कमरा ले लिया। सामान रखा और नाको को देखने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले हमने नाको लेक देखी। उसके बाद नाको गोंपा और फिर मोनेस्ट्री देखी। शाम के समय सूर्यास्त देखने के लिए हमने एक कठिन और बेहद लंबा ट्रेक किया। मैंने इससे खूबसूरत सूर्यास्त पहले कभी नहीं देखा था।

स्पीति की यात्रा

नाको के बाद स्पीति शुरू हो जाता है। अगली सुबह हम 8 बजे नाको के स्टैंड पर पहुँच गए। यहाँ से हमें काजा जाना था। काजा जाने वाली बस 9:30 बजे आने वाली था। तब तक मैं काजा जाने वाले रास्ते पर लिफ्ट मांगता रहा लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई। 10 बजे बस और हम उसी में बैठ गए। बस में एक इजरायली व्यक्ति भी मिला। बात करने पर पता चला कि वो डेढ़ महीने से हिमाचल प्रदेश में घूम रहा है और अभी धनकर जा रहा है।

हमें लग रहा था कि बस 3-4 घंटों में पहुँचा देगी लेकिन रास्ता बेहद खराब था। इस वजह से बस धीरे-धीरे बढ़ रही थी। ताबो, शिचलिंग और धनकर होते हुए हम शाम 4 बजे काजा पहुँचे। काजा स्पीति की सबसे फेमस जगहों में से एक है। इस जगह की भीड़ देखकर मुझे लगा कि मैं किसी बड़े कस्बे में आ गया हूं। अब मुझे अपने लिए ठिकाना खोजना था।

काजा

काजा में जो भी होटल मिल रहे थे सब बहुत महंगे थे। मुझे बजट वाला ठिकाना चाहिए। खोजते-खोजते हमें एक मडहाउस कम होमस्टे मिल गया। ये मड हाउस पारंपरिक रूप से बना हुआ था। बाकी की तुलना में ये काफी सस्ता था। इस जगह पर मैंने रुकने का फैसला किया। शाम के समय मैं काजा को देखने के लिए निकल पड़ा। काजा में काफी बड़ी मोनेस्ट्री है। इसे देखने के बाद मैंने ऊँचाई पर बने बौद्ध स्टैच्यू को देखा।

अगले दिन मुझे हिक्किम, लांगजा और कोमिक जाना था। इन जगहों पर कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं जाता था और मुझे बाइक चलानी आती नहीं है। मैं बाइक रेंट वाली दुकान पर गया। जहाँ दुकानदार ने एक व्यक्ति से मुलाकात करवाई जो अगले दिन अकेले इन जगहों पर जाने वाला था। मैं उसी के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। दिक्कत ये थी कि मेरे पास गर्म कपड़े नहीं थे और उनको खरीदने के पैसे भी नहीं बचे थे। मैं जहाँ ठहरे थे उनको ये बात बताई तो उन्हें अपने कुछ गर्म कपड़े इस यात्रा के लिए दे दिए।

लांगजा और हिक्किम

अगले दिन सुबह 8 बजे हम दोनों बाइक रेंट वाली दुकान पर पहुँचे। वहाँ से बाइक ली और पेट्रोल डलवाकर लांगजा की ओर निकल पड़े। कुछ देर तक रास्ता एकदम आसान है लेकिन आगे चलने पर रास्ता कच्चा शुरू हो जाता है। रास्ता इतना खराब था कि लांगजा पहुँचते हुए हमारी गाड़ी दो बार गिर चुकी थी हालांकि हम नहीं गिरे थे।

कुछ देर बाद हम लांगजा पहुँचे। लांगजा में ठंडी और तेज हवाएं चल रहीं थीं। हमने यहाँ पर बौद्ध स्टैच्यू देखा। कुछ देर गांव में घूमते रहे और फिर हिक्किम के लिए निकल पड़े। कुछ देर तक पक्का रास्ता शुरू हो जाता है और फिर से हमारी गाड़ी जमीन पर गिर पड़ती है। रास्ता इतना खराब नहीं था लेकिन मेरे साथ वाले को पहाड़ों में बुलेट चलाने का अनुभव नहीं था।

कोमिक

कुछ देर बाद हम हिक्किम पहुँचे। हिक्किम में दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित डाकघर है। यहाँ मैंने दो लेटर खरीदे और उनमें कुछ लिखकर दो लोगों को पोस्ट कर दिया। अब ये कभी पहुँचेंगे या नहीं, ये नहीं पता। अब हम यहाँ से कोमिक की ओर चल पड़े। कोमिक तक का रास्ता पक्का है। इस वजह से हम कुछ ही मिनटों में कोमिक पहुँच गए।

कोमिक दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित मोटरबेल रोड वाला गांव है। यहाँ पर दो मोनेस्ट्री हैं और दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित रेस्टोरेंट भी है। कुछ देर कोमिक में ठहरने के बाद हम वापस चल पड़े। हिक्किम और लांगजा को देखते हुए हम काजा के रास्ते पर चल पड़े। हम फिर से कच्चे रास्ते पर उतर रहे थे। एक जगह हम ऐसे गिरे कि गाड़ी भी क्षतिग्रस्त हो गई और हमें भी चोटें आईं। कुछ देर तक तो मेरा दिमाग सुन्न हो गया। अंदर बहुत गुस्सा था लेकिन निकाल नहीं पाया।

धीरे-धीरे गाड़ी को बढ़ाते हुए हम काजा पहुँच गए। पहले हमें किब्बर और की मोनेस्ट्री जाना था लेकिन उसका रास्ता भी ऐसा ही था। इस वजह से हम धनकर गए और वहाँ मोनेस्ट्री देखी। शाम में लौटे और बिस्तर में पड़ते ही नींद की आगोश में चले गए। अगले दिन 5 बजे मनाली वाली बस में बैठे। शाम 4 बजे मनाली पहुँचे और वहाँ से दिल्ली जाने वाली बस मैं बैठ गया।

हिमाचल प्रदेश की ये यात्रा मेरे लिए काफी रोमांचकारी रही। बैग खोया, लंबी-लंबी यात्राएं की और कई बार गिरना भी हुआ। हिमाचल प्रदेश की पहली यात्रा ऐसी होगी, ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं सोचा था।

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